सविनय अवज्ञा आंदोलन-
सविनय अवज्ञा का शाब्दिक अर्थ होता है किसी चीज का विनम्रता के साथ तिरस्कार या उल्लंघन करना जिसमें अहिंसा के साथ हिंसा की कोई गुंजाइश न हो।
सविनय अवज्ञा आंदोलन की भूमिका:
सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत 6 अप्रैल, 1930 को दांडी ग्राम से हुआ, जिसका उद्देश्य कुछ विशिष्ट प्रकार के ग़ैर-क़ानूनी कार्यों को अहिंसापूर्वक सामूहिक रूप से समाहित करके ब्रिटिश सरकार को उनके घुटनों के बल झुका देना था।
सविनय अवज्ञा आंदोलन की बुनियाद:
यूँ तो सविनय अवज्ञा आन्दोलन की बुनियाद वर्ष 1929 के लाहौर अधिवेशन में ही रखा जा चुका था जब देश की जनता को यह प्रतीत हो गया था कि ब्रिटिश सरकार डोमिनियन स्टेटस की मांग को कहीं ठंडे बस्ते में रख दिया है, जिसकी खोज ख़बर दूर तलक किसी को नहीं है। नेहरु रिपोर्ट को नजरअंदाज करना, आन्दोलन के मुख्य कारणों में से एक था। इसी लाहौर अधिवेशन में पहली बार पूर्ण स्वाधीनता पाने का लक्ष्य रखा गया जिसने आने वाले कई सारे जन आंदोलनों की एक नई दशा और दिशा तय की।
सविनय अवज्ञा आन्दोलन का लक्ष्य:
1. नमक क़ानून का उल्लघंन कर स्वयं द्वारा नमक निर्माण करना
2. सरकारी सेवाओं, शिक्षा केन्द्रों एवं उपाधियों का सम्पूर्ण बहिष्कार करना
3. महिलाओं द्वारा शराब, अफ़ीम एवं विदेशी कपड़े की दुकानों पर जाकर धरना देना
4. विदेशी वस्तुओं और कपड़ो का बहिष्कार करना
5. ब्रिटिश सरकार को दी जाने वाली गलत कर अदायगी को रोकना
6. विनय के साथ गलत कानूनों की अवज्ञा करना
सविनय अवज्ञा आन्दोलन की शुरुवात:
12 मार्च 1930 को साबरमती आश्रम से गाँधी जी और उनके आश्रम के 78 अन्य साथियों ने अहमदाबाद से 385 किमी. दूर दांडी ग्राम के लिए पैदल यात्रा प्रारम्भ की। ठीक 6 अप्रैल,1930 को गांधी जी दांडी ग्राम पहुंचे, जहाँ उन्होंने समुद्री जल के वाष्पीकरण से बने नमक को मुट्ठी में उठाकर सरकार की आज्ञा की अवज्ञा की। और इसी नमक कानून की अवज्ञा के साथ ही पूरे देश में सविनय अवज्ञा आन्दोलन का व्यापक रूप में प्रसार हुआ जिसका परिणाम हर क्षेत्र विशेष में देखने को मिला।
तमिलनाडु में सी.राजगोपालाचारी ने इसी प्रकार का एक मार्च का आयोजन तिरुचिरापल्ली से वेदारंयम तक किया। कांग्रेस की नेता सरोजिनी नायडू ने ब्रिटिश सरकार के धरसना (गुजरात) स्थित नमक कारखाने पर महिलाओं की बड़ी संख्या को लेकर अहिंसक सत्याग्रहियों के मार्च का नेतृत्व किया।
गांधी इर्विन समझौता का “सेफ्टी वाल्व” के रूप में आना
सविनय अवज्ञा की लोकप्रियता देखकर ब्रिटिश हुकूमत डर गई और इसी तूफ़ान को रोकने के लिए उसने गाँधी और लॉर्ड इरविन के बीच 5 मार्च 1931 एक समझौता तय किया जिसे गांधी-इर्विन समझौता कहा जाता है। इस राजनीतिक समझौते के तहत सविनय अवज्ञा आंदोलन को सशर्त समाप्त कर दिया गया था जिसमें ब्रिटिश सरकार को उन सभी राजनीतिक कैदियों को छोड़ना था जिनके खिलाफ हिंसा का कोई मुक़दमा दर्ज नहीं था। और कांग्रेस को सविनय अवज्ञा आन्दोलन को वापस लेना था। गांधी-इर्विन समझौता द्वितीय गोल मेज सम्मेलन का मोहरा था जिसके कारण कई सारे राष्ट्रवादी नेता नाखुश थे।
सविनय अवज्ञा आंदोलन के कारण:
■ साइमन कमीशन के बहिष्कार में उठ खड़ा हुआ जन आंदोलन एक नए क्रांति की ओर अग्रसर हो रहा था। इसे में सविनय अवज्ञा आंदोलन का उदय होना घाव पर मरहम लगाने जैसा था।
■ ब्रिटिश सरकार की हठधर्मिता और मोतीलाल नेहरू द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट को एक सिरे से अस्वीकार कर देना।
■ चौरी-चौरा कांड के बाद बंद हुए असहयोग आन्दोलन के कारण कई वर्षों से जनता एक नए आंदोलन की राह देख रही थी।
■ वर्ष 1929 की आर्थिक मंदी भी प्रमुख कारणों में से एक थी
■ गाँधीजी की ग्यारह मांगे जिसमें नमक कर को समाप्त करना, सम्पूर्ण मद्य-निषेध, ना के खर्च में कम-से-कम पचास प्रतिशत की कमी, विदेशी कपड़ों के आयात पर निषेध, आत्मरक्षा के लिए हथियार रखने जैसे प्रावधान शामिल थे।
सविनय अवज्ञा आंदोलन का संघर्ष:
यह प्रथम ऐसा आंदोलन था जिसमें प्रथम बार महिलाओं ने भारी संख्या में अपनी सशक्त भागीदारी दर्ज की। दिल्ली में धरना देने के कारण 1600 स्त्रियों को कैद कर लिया गया। भारत में जगह-जगह पर नमक कानून तोड़ा गया एवं विदेशी कपड़ों की होली जलाई गई। खान अब्दुल गफ्फार खान के नेतृत्व में ‘खुदाई खिदमतगार’ नामक संगठन की स्थापना की गई जो आगे चलकर ‘लाल कुर्ती’ के नाम से विख्यात हुआ। इस प्रकार समस्त भारत में सविनय अवज्ञा आंदोलन का तीव्रता के साथ प्रसार हुआ जिसमें लगभग 90,000 से अधिक सत्याग्रही एवं प्रमुख कांग्रेसी नेता गिरफ्तार हुए।
सविनय अवज्ञा आंदोलन का महत्व:
■ इस आंदोलन में पहली बार बड़ी संख्या में भारतीयों ने भाग लिया, जिसमें मजदूर व किसानों से लेकर उच्चवर्गीय लोग तक थे।
■ इस आंदोलन में करबन्दी को प्रोत्साहन दिये जाने के परिणामस्वरूप किसानों में भी राजनीतिक चेतना एवं अपने अधिकारों की मांग के लिए संघर्ष करने की क्षमता का विकास हुआ ।
■ इस आंदोलन ने जनता में निर्भयता, स्वावलंबन और बलिदान के गुण प्रसारित किये ।
■ देश की जनता को ज्ञान हो गया कि अपने दु:खों के निवारण हेतु दूसरों का मुख ताकना एक भ्रम था जिसके उपरांत उन्होंने स्वतंत्र रहने की जिजीविषा की लौ जगाई।
■ इस आंदोलन ने जमीनी स्तर पर कांग्रेस की नाकामियों को भी प्रदर्शित किया जिसके पास भविष्य के लिये आर्थिक, सामाजिक कार्यक्रम में निर्धारित लक्ष्य न होने के कारण वह भारतीय जनता में व्याप्त रोष का पूर्णतया उपयोग न कर सकी ।
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