क्या सचमुच भारतीय संविधान 'उधार का थैला' है?

क्या सचमुच भारतीय संविधान ‘उधार का थैला’ है?

भारतीय संविधान की प्रस्तावना पर वाह्य संस्कृति का प्रभाव-

द्वितीय महायुद्ध  के बाद भारतीयों को संविधान निर्माण का अधिकार प्रदान किया गया , जिस पर महायुद्ध के प्रभाव को स्पष्तः देखा जा सकता है |

अमेरिका एवं ब्रिटेन जैसे प्रजातान्त्रिक शक्तियों के साथ भारत भी महायुद्ध में शामिल था | महायुद्ध से निपटने के लिए अमेरिका और ब्रिटेन की सरकारों में संवैधानिक प्रावधान न होने के बावजूद संकट से निपटने के लिए असाधारण शक्तियों का प्रयोग किया | संविधान निर्माण के समय 1947 में पाकिस्तान ने भारत पर हमला किया अत: महायुद्ध एवं पाक हमले से सबक लेते हुए संविधान निर्माताओं ने ऐसी परिस्थितियों से निपटने हेतु संकटकालीन प्रावधानों का प्रबंध स्वीकार किया |

  संविधान निर्माण के दौरान शीतयुद्ध के चलते दुनिया उदारवादी , पूंजीवादी और समाजवादी खेमे में विभाजित होने लगी | भारत ने दोनों से सामान दूरी बनाये रखते हुए दोनों की अच्छाईयों को जगह दी |

सभा ने उदारवादी मान्यताओं से स्वतंत्रता अधिकार व लोकतंत्र ग्रहण करके उसे समाजवादी , सामाजिक , आर्थिक न्याय के साथ जोड़ दिया |यद्यपि प्रस्तावना में समाजवाद व पूंजीवाद जैसे शब्दों का प्रयुक्त नहीं किया गया |

आजाद न होने के वावजूद भारत UNO का संस्थापक सदस्य था अत: शीतयुद्ध की परिस्थितियों एवं भारतियों को ध्यान में रखकर संविधान में UNO की भावना को राज्य के कर्तव्य के रूप में अनुच्छेद 51(क) में जगह दी गई ताकि शांति के माहौल में सबके सहयोग से भारत का तेजी के साथ विकाश किया जा सके |

भारतीय निर्माता अमेरिका , फ्रांस और रूस की क्रांतियों से प्रभावित दिखाई देते हैं | उन्होंने अमेरिका क्रांति से स्वतंत्रता , रुसी क्रांति से समानता तथा फ़्रांसिसी क्रांति से भावना को ग्रहण करके उसे संविधान में स्थान दिया |

भारत ने विश्व के अनेक देशों के अच्छे प्रवाधानो को भारतीय परिस्थितियों एवं आवश्यक परिवर्तन के साथ संविधान में अपनाया,इसलिए भारतीय संविधान पर यह कटाक्ष किया जाता है कि ‘वह उधार का थैला’ है | परन्तु संविधान निर्माताओं ने किसी की नक़ल करने की बजाय परिवर्तन के साथ चयन के सिध्दांत को अपनाया है |   

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