Champaran satyagrah

चम्पारण सत्याग्रह गांधी जी की भूमिका,कारण और प्रभाव

champaran movement

● भूमिका :

आधुनिक भारत के इतिहास में ‘चम्पारण सत्याग्रह’ की भूमिका अति महत्वपूर्ण है जिसकी गूँज ने बाद के अन्य आंदोलनों का सफल नेतृत्व किया।

चम्पारण सत्याग्रह की शुरुवात वर्ष 1917 में बिहार के चम्पारण जिले से हुई जिसका नेतृत्व महात्मा गांधी ने किया। भारत की धरती पे गाँधी जी द्वारा शुरू किया गया यह उनका पहला जन आंदोलन था जिसकी ख्याति ने उन्हें स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अमर बना दिया। यह मूल रूप से भारतीय किसानों द्वारा नील बागान के व्यापारियों के ख़िलाफ़ एक सत्याग्रह आंदोलन था जिसमें ‘अहिंसा’ को एक प्रमुख हथियार के रूप में प्रयोग किया गया।

● चम्पारण सत्याग्रह का कारण और प्रभाव

चम्पारण सत्याग्रह का मूल कारण नील बागान के व्यापारियों द्वारा चम्पारण के किसानों पर थोपा गया मनमाफ़िक तिनकठिया प्रणाली था। ‘तिनकठिया प्रणाली’ का साधारण सा मतलब था 1 बीघे जमीन के 3 कट्ठे हिस्से पे नील की जबरदस्ती खेती करना। निर्धारित खेती न करने पर किसानों को बुरी तरह से प्रताड़ित किया जाता था। किसानों की व्यथा और भीतर से तोड़ देने वाली शोषण ने अंग्रेज व्यापारियों के समक्ष एक जन आंदोलन खड़ा कर दिया।

● चम्पारण सत्याग्रह की बुनियाद

वर्ष 1916 के कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में राज कुमार शुक्ल की मुलाकात गांधी जी से हुई। उस समय राजकुमार शुक्ल कॉलेज में अध्यापक थे और चम्पारण के नील किसानों का नेतृत्व कर रहे थे। अधिवेशन की समाप्ति पे राज कुमार शुक्ल ने गाँधीजी से चम्पारण के निलहों की कथा और व्यथा सुनाई और उन्हें चम्पारण आने के लिए राजी किया। गांधी जी को उस समय भारत आये तकरीबन एक साल हुए थे। एक तरफ जहां साउथ अफ्रीका में उनके द्वारा किये गए अनेक आंदोलन व सत्याग्रह के सफल अनुभव चम्पारण के निलहों के लिये अंतिम उम्मीद थी। तो वहीं दूसरी तरफ गांधी जी द्वारा प्रतिपादित अहिंसा और सत्याग्रह को फिर से दुहराने का यह सही अवसर था।

● चम्पारण सत्याग्रह और गाँधीजी

चम्पारण के किसान इतने शोषित और लाचार थे कि उन्हें खाने के लिए न पेट भर भोजन सुलभ था और न रहने के लिए घर। कमजोर, शरीर से सूखे हुए मांसपेशियों के बीच वे किसानों के पास सिर्फ हड्डी शेष थी। यह ऐसा दृश्य था जिसने गाँधीजी को सोचने पे मजबूर कर दिया। यह चम्पारण ही था जिसने गाँधीजी को उस समय के वास्तविक भारत की सचरित्र व्याख्या की। चम्पारण में उस समय तकरीबन नील के 70 कारखाने थे और समूचा चम्पारण इन कारखानों के जाल में फंसा हुआ था। बेहिसाब लगान और जातिगत पूर्वाग्रह ने किसानों की कमर तोड़ रखी थी। ऐसे हालत में गांधी का उदय होना और किसानों के कंधे से कंधे देकर उनकी आवाज बनना ‘गांधीवाद’ की शुरुवात थी। चम्पारण की घटना ने गांधी जी को एक सर्वमान्य राष्ट्रीय नेता के रूप में स्थापित कर दिया जहाँ से उन्होंने सक्रिय सार्वजनिक जीवन की शुरुवात की। यही चम्पारण सत्याग्रह था जिसने गांधी के अहिंसा की शक्ति और आत्मबल की दृढ़ता को प्रमुखता से मुखरित किया। गांधी जी द्वारा प्रतिपादित अहिंसा की नीति ने न सिर्फ लोगों में साहस का रक्तसंचार किया अपितु अपनी आवाज को मुखरता से प्रसारित करने को प्रेरित किया। चम्पारण सत्याग्रह ने गांधी जी को लोकल से ग्लोबल कर दिया जिसकी धमक ब्रिटीश हुकूमत तक पहुंचने लगी। पूरे देश में गांधी जी की जयकार होने लगी और गांधी जी आंदोलन की सफलता का पर्याय माने जाने लगे।

● चम्पारण सत्याग्रह और उसका स्वंतत्रता संग्राम में प्रभाव

गाँधी के नेतृत्व में आयोजित यह सत्याग्रह ब्रिटीश सरकार को घुटनों के बल टिका दिया। ब्रिटिश हुकूमत न सिर्फ लगान की दरें कम कि अपितु किसानों की हड़पी हुई जमीन भी वापिस की। यह सत्याग्रह इतना सफल हुआ कि किसान अब प्रखर और संगठित होकर अपने हक की आवाज उठाने लगे। अहिंसा के मार्ग को मार्गदर्शित करने वाले इस चम्पारण किसान सत्याग्रह ने बाद के असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन ,नमक सत्याग्रह जैसे बाकी जन आंदोलनों का ऐतिहासिक नेतृत्व किया।
चम्पारण सत्याग्रह न सिर्फ किसान और गाँधी जी से चर्चित रहा अपितु इसने सालों से चली आ रही नरमपंथी और गरमपंथी के बीच की खाई को पाटने का भी कार्य किया। यह पहला आंदोलन था जिसने बाद के आनेवाले कृषक आंदोलनों की नई रूप रेखा तैयार की

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