चीन और ताइवान विवाद
हालिया समय में चीन ने ताइवान पर युद्ध करने की धमकी दी है, जिससे चीन और ताइवान विवाद एक बार फिर से सुर्ख़ियों का केंद्र बना हुआ है । यह पहला वक्त नहीं है जब चीन द्वारा ताइवान पर नकेल कसने को कोशिश की गई हो। चीन की विस्तारवादी नीति हमेशा से ही एक वैश्विक समस्या का रूप बना हुआ है। चीन का कई देशों के साथ बॉर्डर डिस्प्यूट का मसला जगजाहिर है।
चीन और ताइवान विवाद और बढ़ गया जब चीन ने ताइवान को यह धमकी दी है कि अगर वह ‘फॉर्मल डिक्लेरेशन ऑफ इंडिपेन्स’ की घोषणा करता है। यानी कि यदि वह अपने पार्लियामेंट से एक इंडिपेंडेंट कंट्री (स्वतन्त्र देश) की डिक्लेरेशन को पारित करता है तो वह युद्ध के लिए तैयार रहे। चीन का कहना है कि ताइवान उसका एक प्रोविंस, यानी कि एक राज्य है और ताइवान को यह अधिकार नहीं है कि कोई राज्य उसके खिलाफ स्वतन्त्र देश घोषित करने की हिमाकत करे।
बताते चलें कि अभी तक पूरे विश्व में one China को स्वीकृत किया गया है। और वह China सिर्फ एक ही पीपुल रिपब्लिक ऑफ चाइना ( People Republic Of China)। ताइवान अपने को रिपब्लिक ऑफ चाइना कहता है। कभी चीन ताइवान को अपना हिस्सा बताता है तो कभी ताइवान, चीन को अपना हिस्सा बताता है।
वर्ष 1949 के आसपास पूरे चीन में Chang Kai Shek की सरकार चलती थी। धीरे धीरे माओत्से की कम्युनिस्ट राजनीतिक पकड़ ने Chang Kai Shek को ताइवान की ओर प्रस्थान करने पर मजबूर कर दिया। नतीजन आज ताइवान और चीन दो अलग अलग हिस्सों के रूप में विख्यात है और तभी से चीन और ताइवान का विवाद तब शरू हुआ |
ताइवान में दो प्रमुख राजनीतिक पार्टियां हैं एक PPP है और दूसरा KMT है। जहाँ एक तरफ PPP पार्टी की मंशा चीन को दुबारा से चढ़ाई करके हथियाना है तो वहीं दूसरी तरफ KMT पार्टी की चाहत ताइवान में ‘फॉर्मल डिक्लेरेशन ऑफ इंडिपेन्स’ की घोषणा करना है। KMT का कहना है कि अगर ताइवान अपने को एक आजाद राष्ट्र की घोषणा करता है तो USA, UK समेत विश्व के कई सारे देश ताइवान को एक राष्ट्र के रूप में एक्सेप्ट करेंगे। हालांकि ताइवान के कई सारे बुद्धिजीवी वर्गों का कहना है कि हमें ‘रिपब्लिक ऑफ चाइना’ के जगह सिर्फ ताइवान को उद्घोषणा करनी चाहिए। हमें ताइवान को सिर्फ ‘ताइवान’ संज्ञा देनी चाहिए जिससे ONE CHINA की मान्यता सिर्फ चीन को हो। इससे न सिर्फ चीन और ताइवान का विवाद खत्म होगा अपितु ताइवान को एक स्वंत्रत राष्ट्र के रूप में मान्यता भी मिलेगा।
फिलहाल ताइवान सर्वाइवल के दौर से गुजर रहा है। एक तरफ से जहाँ चीन का उसपे प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से दबाव है वहीं दूसरे तरफ ताइवान को स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में International Acceptance भी नहीं है। One China के रूप में अभी भी विश्व सिर्फ चीन को ही PRC के रूप में Recognize करता आ रहा है। यह ताइवान के लिए एक सोचनीय स्थिति है कि वह खुद को किस रूप में प्रस्तुत करना चाहता है।
हालांकि यह एक सुखद खबर है कि चीन और ताइवान के विवादित इस मुद्दे पर USA के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन ने चीन को चेताते हुए एक तल्ख़ टिप्पणी की है कि वो इस अड़ियल रवैये से बाज आए। USA का इस मसले में हस्तक्षेप करना ताइवान के लिए फिलहाल एक आशा की किरण के रूप में देखा जा सकता है।
चीन और ताइवान विवाद : आगे की राह :
चीन इस समय बुरी तरह से वैश्विक दबाव का सामना कर रहा है। पिछले वर्ष वुहान से कोविड की शुरुवात ने चीन की राजनीतिक छवि को विश्व स्तर पर धूमिल कर रखा है। फिलहाल चीन की गिरती इकोनॉमी, जैक मा विवाद, शी जिनपिंग का विवादित बयान चीन की छुपी विस्तारवादी मंशा को प्रकाशित करता है। चीन को अगर इजे वक्त वैश्विक दबाव नहीं बनाया गया तो वह ताइवान, South China Sea समेत अरुणाचल प्रदेश को भी अपना प्रोविंस घोषित करने की कवायद करेगा। चीन की घुसपैठ नीति को यदि समय रहते आवाज नहीं दी गई तो यह वैश्विक शांति व भाईचारे धूल धूसरित कर देगा।
● अन्य जानकारी : चीन और ताइवान के बीच एक ताइवान स्ट्रेट है जिसे फॉर्मेसा स्ट्रेट भी कहा जाता है। यह चीन और ताइवान को जलमार्ग से जोड़ने का कार्य करता है।
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