आर्थिक संवृद्धि तथा आर्थिक विकास

आर्थिक वृद्धि तथा आर्थिक विकास में क्या अंतर है :

आर्थिक वृद्धि तथा आर्थिक विकास :

सत्तर के दशक के पूर्व आर्थिक संवृद्धि तथा आर्थिक विकास को सामान्यतया समान अर्थ में प्रयोग में लाया जाता था पर बाद में इनमें भेद स्थापित किया गया।

आर्थिक संवृद्धि = परिणात्मक परिवर्तन (राष्ट्रीय उत्पाद के आकर में परिवर्तन)

 आर्थिक संवृद्धि से तात्पर्य किसी समयावधि में किसी अर्थव्यवस्था में होने वाली वास्तविक आय की वृद्धि से है।

सामान्यतया यदि सकल राष्ट्रीय उत्पाद, सकल घरेलू उत्पाद तथा प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हो रही हो तो हम कहते हैं कि आर्थिक संवृद्धि हो रही है।

जहाँ आर्थिक संवृद्धि परिमाणात्मक परिवर्तन से सम्बन्धित है, आर्थिक विकास परिमाणात्मक तथा गुणात्मक दोनों प्रकार के परिवर्तनों से सम्बन्धित है।

आर्थिक संवृद्धि उत्पादन की वृद्धि से सम्बन्धित है, जबकि आर्थिक विकास सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, गुणात्मक एवं परिमाणात्मक सभी परिवर्तनों से सम्बन्धित है।

आर्थिक संवृद्धि , आर्थिक विकास का एक अंग है। आर्थिक विकास की धारणा आर्थिक संवृद्धि की धारणा से अधिक व्यापक है।

आर्थिक विकास तभी कहा जायेगा जबकि जीवन की गुणवत्ता (quality of life) में सुधार हो। ऐसा माना जाता है कि प्रतिव्यक्ति आय सूचकांक जीवन की गुणवत्ता को सही रूप में नहीं प्रदर्शित करता है, अतः आर्थिक विकास की माप में अनेक चर सम्मिलित किये जाते हैं, जैसे- आर्थिक, राजनैतिक तथा सामाजिक संस्थाओं के स्वरूप में परिवर्तन, शिक्षा तथा साक्षरता दर ,जीवन प्रत्याशा, पोषण का स्तर, स्वास्थ्य सेवायें, प्रति व्यक्ति उपभोग वस्तुयें आदि।

आर्थिक संवृद्धि तथा आर्थिक विकास में अंतर

आर्थिक विकास = परिमाणात्मक तथा गुणात्मक परिवर्तन (राष्ट्रीय उत्पाद तथा साथ ही जीवन की गुणवत्ता में सुधार जो राष्ट्रीय कल्याण में वृद्धि से सम्बन्धित है)


आर्थिक विकास का प्रमुख लक्ष्य कुपोषण, बीमारी, निरक्षरता, गन्दगी, बेरोजगारी, विषमता आदि को प्रगतिशील रूप से कम करना तथा अन्तिम रूप से समाप्त करना है। आर्थिक विकास की अवधारणा बहुत अधिक व्यापक है जो अपने में आर्थिक संवृद्धि, सामाजिक क्षेत्रक विकास (Social sector development) तथा समावेशी विकास (Inclusive) growth) को सम्मिलित किये हुए है।

आर्थिक विकास में आर्थिक संवृद्धि सम्मिलित है इसलिए आर्थिक विकास के मापकों में राष्ट्रीय आय तथा प्रतिव्यक्ति राष्ट्रीय आय में भी वृद्धि होना आवश्यक है।
चूँकि प्रतिव्यक्ति आय की गणना करते समय हम जनसंख्या को भी ध्यान में रखते हैं, इसलिए हम प्रतिव्यक्ति आय की वृद्धि को ही आर्थिक संवृद्धि की माप के लिए अधिक स्वीकार करते हैं

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