भारत में अंग्रेजों की भू-राजस्व नीतियां

भारत में अंग्रेजों की भू-राजस्व नीतियां

अंग्रेजों की भू-राजस्व नीतियाँ

● भू-राजस्व की भूमिका और इतिहास

सरकार द्वारा किसानों की भूमि पर कृषि कर के रूप में लगाया गया कर(Tax) ‘भू-राजस्व’ कहलाता है, जो किसी भी सरकार के ख़ज़ाने में आने वाला राजस्व का सबसे बड़ा स्रोत होता है।

ब्रिटिशों के आगमन से पहले भारत में परंपरागत भूमि व्यवस्था की नीति प्रचलित थी जिसमें किसानों को अपनी भूमि पर अपना मालिकाना हक होता था। तथा ये किसान अपने उगाए गए फसल के एक हिस्से को कर (Tax) के रूप में सरकार को दे दिया करते थे।

बक्सर युद्ध के बाद वर्ष 1765 में अंग्रेजो द्वारा इलाहाबाद की प्रसिद्ध संधि की गई, जिसमें ईस्ट इंडिया कम्पनी को बिहार,बंगाल और उड़ीसा की दीवानी दी गई। दीवानी देने का यहाँ सामान्य सा अर्थ उस इलाके का सम्पूर्ण अधिकार देने से था, जहाँ सरकार अपने शासन प्रशासन के लिए अपने मनमुताबिक नियम कानून बना सकती थी।

हालांकि ईस्ट इंडिया कम्पनी ने वर्ष 1771 तक भारत में चली आ रही परपरागत भू-राजस्व की नीति को ही बरकरार रखा। किंतु समय के साथ अपने आर्थिक जरूरतों को भरपाई करने हेतु कम्पनी ने भू-राजस्व की दरों में अप्रत्याशित वृद्धि कर दी। ईस्ट इंडिया कम्पनी द्वारा भू-राजस्व की दरों में वृद्धि का मुख्य कारण कम्पनी के खर्चों में वृद्धि थी। अब कम्पनी अपने आर्थिक व्यय की भरपाई और ज्यादा से ज्यादा धन कमाने की मंशा से भारत की परपरागत कृषि व्यवस्था में हस्तक्षेप करने की नीति शुरू कर दी।

कुछ सालों तक किसानों का यह शोषण जमींदारों और बिचौलियों के माध्यम से होता रहा। तथा कालांतर में इन पारंपरिक नीतियों की जगह ब्रिटिशों ने करों के निर्धारण और वसूली के लिए कई तरह की भू-राजस्व की नीतियां बनाईं जो निम्नलिखित है :

1) इजारेदारी प्रथा

साल 1772 में वारेन हेस्टिंग्स द्वारा एक नई भू-राजस्व नीति की शुरुवात की गई जिसे ‘इजारेदारी प्रथा’ के नाम से जाना जाता है।इजारेदार का साधारण सा मतलब ठेकेदार अथवा जमींदार होता था जो कम्पनी और किसानों के बीच की कड़ी था एवं उनका मुख्य काम राजस्व की उगाही करना था। इजारेदारी प्रथा मुख्यतः बंगाल में ही शुरू हुई जिसका मुख्य उद्देश्य अधिक भू-राजस्व की वसूली करना था।

इजारेदारी प्रथा एक तरह से पंचवर्षीय ठेके की व्यवस्था थी जिसमें सबसे अधिक बोली लगाने वालों को ठेके पर तय अवधि के लिए भूमि प्रदान किया जाता था। हालांकि बदलती जरूरतों और गलत नीतियों के कारण कुछ सालों बाद ही इस पंचवर्षीय ठेके को एक साल के लिए कर दिया गया। इजारेदारी प्रथा की अस्पष्ट नीतियों के वजह से जमींदारों ने किसानों का अधिक शोषण किया। इजारेदार किसानों से अधिक राजस्व वसूल करते थे और बदले में कम्पनी को बहुत ही कम राजस्व देते थे। चूंकि जमींदारों को पता था कि भूमि पर उनका स्वामित्व स्थायी नहीं है तो उन्होंने एक ही वर्ष में अधीक से अधिक कर वसूलने की मनचाही कोशिश की। कारण यह हुआ कि किसानों पर अत्यधिक जोर पड़ा और किसान  बद से बदहाल होने लगे।

वारेन हेस्टिंग्स द्वारा बनाई यह इजारेदारी प्रथा बहुत ही दोषपूर्ण थी जो अकुशल नीतियों और जमींदारों के मनमाफ़िक कर वसूली के कारण ज्यादा दिन तक चल नहीं पाई। बाद में इजारेदारी प्रथा की खामियों को स्थायी बंदोबस्त के माध्यम से सुधार करने की पहल की गई जो काफी हद तक सफल रही।

2). जमींदारी प्रथा या स्थायी बंदोबस्त

इजारेदारी प्रथा की खामियों तथा दोषों को दूर करने एवं लगान व्यवस्था में सुधार करने हेतु जमींदारी प्रथा की बुनियाद रखी गई।

स्थायी बंदोबस्त का शाब्दिक सा अर्थ ही था भू-राजस्व को जमींदारों के साथ स्थायी करना जिससे कि सरकार को नियमित आय का स्रोत बना रहे। इजारेदारी में चली आ रही एक वर्षीय ठेके को समाप्त कर जमींदारों के साथ 10 सालों के लिए अनुबंध कर लिया गया जिसे आगे आगे स्थायी कर दिया गया।

जमींदारी प्रथा शुरू करने का मुख्य श्रेय लार्ड कार्नवालिस को जाता है। जमींदारी प्रथा ब्रिटिश भारत के कुल क्षेत्रफ़ल का लगभग 19 प्रतिशत था जो मुख्यतः बंगाल, बिहार, उड़ीसा, बनारस तथा कर्नाटक के कुछ उत्तरी भागों तक प्रचलित था।

जमींदारी प्रथा को ही इस्तमारी और स्थायी बंदोबस्त कहा जाता है। जमींदारी प्रथा ने जमींदारों को भूमि का असली मालिक बना दिया जहां वे ब्रिटिश सरकार के कर संग्राहक के रूप में कार्य करते थे। जमींदारी प्रथा में भू-राजस्व का 10/11 हिस्सा सरकार को एवं 1/11 हिस्सा जमींदार को तय किया गया था। सरकार द्वारा तय की गई भू-राजस्व की निर्धारित राशि जमा नहीं करने पर जमींदारों को उनके भूमि से बेदखल कर दिया जाता था।

जमींदारी प्रथा लागू करने का एक और कारण भारत में जमींदारों के रूप में एम ऐसा वर्ग तैयार करना था जो कम्पनी की कठपुतली की तरह काम कर सके। फलतः चोर सिपाही के इस खेल में अत्यधिक भू-राजस्व की मात्रा ने कम्पनी की आय में अप्रत्याशित वृद्धि की।

 जमींदारी प्रथा में सबसे ज्यादा लाभ जमींदारों को हुआ जिन्हें कम्पनी की सह में हमेशा के लिए भूमि का स्वामी बना दिया। स्थायी बंदोबस्त करने से कम्पनी को स्थायी रूप से राजस्व आने लगे जो उनके चहुमुखी विकास का प्रमुख स्रोत बन गया।

इस प्रकार जमींदारों को भूमि का असली स्वामी बन जाने के कारण उनका काम सिर्फ अत्यधिक कर वसूली था। हड्डी से खून खींचने वाली इस जमींदारी प्रथा ने किसानों को अत्यधिक दोहन किया। जमींदारों के बढ़ते शोषण व लूट खसोट की नीति ने भारत के कई क्षेत्रों में किसान विद्रोह की आगाज की। यद्यपि स्थायी बंदोबस्त से दीर्घकालिक सफलता प्राप्त नहीं हुई फिर भी इसने ईस्ट इंडिया कम्पनी को सम्भलने का भरपूर समय दिया।

3 ) रैयतवाड़ी प्रथा

स्थायी बंदोबस्त के उपरांत रैयतवाड़ी प्रथा की शुरूवात की गई। रैयतवाड़ी प्रथा मुख्यतः मद्रास, बम्बई तथा असम के कुछ भागों में प्रचलित था जिसका सारा श्रेय टॉमस मुनरो को जाता है। जमींदारी प्रथा और जमींदारों से इतर कम्पनी ने इस बार रैयतवाड़ी प्रथा में सीधे रैयतों के साथ अनुबंध किये। रैयत का साधारण सा मतलब किसान होता है और किसानों के साथ सीधे समझौते करने के फलस्वरूप ही रैयतवाड़ी व्यवस्था की संज्ञा दी गई।

जमींदारी प्रथा के विलोम रैयतवाड़ी प्रथा ने समाज में किसानों के भू-स्वामित्व की स्थापना की। रैयतों को फिर से भूमि का मालिकाना हक प्राप्त हुआ तथा वे जमींदारों व बिचौलियों के बदले अब सीधे कम्पनी को भू-राजस्व देने लगे।

रैयतवाड़ी प्रथा में भू-राजस्व का निर्धारण वास्तविक उपज की मात्रा पर न करके उनके भूमि के कुल क्षेत्रफल पर किया जाता था।

एक तरह से रैयतवाड़ी प्रथा जमींदारी प्रथा का ही दूसरा रूप था जिसमें जमींदारों की जगह कम्पनी ने ले ली थी। कम्पनी ने प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से जमींदारों जैसा ही रैयतों का विदोहन किया। इससे न सिर्फ कम्पनी को जमींदारों को दी जाने शुल्क में बचत हुई अपितु कम्पनी को एकतरफा फायदे का सौदा हुआ। कम्पनी के अधिकारी अत्यधिक भू-राजस्व की वसूली के लिए रैयतों पे अत्यधिक खेती करवाने लगे। फसल हो या न हो किसानों को तय अवधि में तय लगान देना अनिवार्य था अन्यथा उन्हें उनकी भूमि से बेदखल कर दिया जाता था।

बढ़ती लगान की दरों और कम्पनी की निरंकुशता किसानों को घुटनों के बल टिका दिया। यह एक दूसरे प्रकार की शोषण की नीति थी जिसने सिर्फ  जमींदारी प्रथा की कवर बदली थी , वास्तविक तस्वीर नहीं।

4) महालवाड़ी प्रथा

महालवाड़ी प्रथा पहले से चली आ रही उपरोक्त प्रथाओं का ही संशोधित रूप था जिसमें भू-राजस्व का बंदोबस्त किसान तथा जमींदारों से न होकर महाल प्रधानों से था। महाल का साधारण सा अर्थ गाँव होता था जहाँ भू-राजस्व की  दर पृथक किसान न होकर समूचे गांव से तय किया जाता था। ब्रिटिश सरकार का सीधा सम्बंध  गांव प्रधान अथवा महाल प्रधान से था।

महालवाड़ी प्रथा मुख्यतः मध्य प्रान्त, यूपी (आगरा) एवं पंजाब में प्रचलित था जहां लगान का निर्धारण समूचे गांव के कुल भूमि पर न होकर कुल उत्पादन पर तय किया जाता था।

महाल प्रधान एक तरह जमींदारों का बदला हुआ रूप था। अंतर सिर्फ इतना था कि जमींदारी प्रथा में जहां जमींदार शब्द का प्रयोग होता था वही महालवाड़ी प्रथा में महाल प्रधान शब्द का प्रयोग होने लगा। महाल प्रधान भी जमींदारों से कम नहीं थे, वे भी मौका पाते ही भू-राजस्व न जमा करने पर किसानों से उनकी भूमि को हड़प लिया करते थे।

महालवाड़ी व्यवस्था ने कम्पनी को किसानों से पृथक कर दिया तथा महाल प्रधानों को जमींदारों की भांति लूट खसोट करने का खुला क्षेत्र दे दिया।

● भारत में अंग्रेजों की भू-राजस्व नीतियों का निष्कर्ष

ब्रिटिश सरकार द्वारा भू-राजस्व की वसूली हेतु समयानुसार देश के अलग-अलग क्षेत्रों में पृथक भू-राजस्व की नीतियों का निर्माण किया गया, जिसका मुख्य उद्देश्य  भू-राजस्व के माध्यम से कम्पनी को अपना आर्थिक संवर्धन करना था। यद्यपी इन नीतियों के वजह से ब्रिटिश सरकार को भले ही अत्यधिक लाभ मिले, किंतु किसानों के हितों के लिए बनाई गई इन सारी नीतियों के बावजूद किसान हाशिये पर रहे। नतीजन किसान समय के सापेक्ष अपने को संभाल नहीं सके और भारतीय कृषि पतन की ओर चल पड़ी।

परिणाम यह है कि सैकड़ो वर्षों से चली आ रही इस शोषित नीति ने अभी तक किसानों को दुबारा उठने का मौका नहीं दिया। हाल ही में हो रहे किसान आंदोलन इस बात का गवाह है कि किसानों के नाम पर कितना छल हुआ है जिसका नया इतिहास लिखना अभी बाकी है।

● परीक्षाओं में पूछे जाने वाले महत्वपूर्ण प्रश्न

1). इजारेदारी प्रथा की शुरुवात किसने की ?

      – वारेन हेस्टिंग्स

2). इजारेदारी प्रथा कहाँ लागू हुई ?

     – बंगाल में

3). जमींदारी प्रथा की शुरुवात किसने की ?

    – लार्ड कार्नवालिस

4).  जमींदारी प्रथा कहाँ प्रचलित थी ?

     – बंगाल, बिहार, उड़ीसा, बनारस तथा कर्नाटक के कुछ उत्तरी भागों में

5). जमींदारी प्रथा में भू-राजस्व का कितना हिस्सा सरकार को एवं कितना हिस्सा जमींदार को तय किया गया था ?

    – 10/11 हिस्सा ब्रिटिश सरकार को

    – 01/11 हिस्सा जमींदार को

6). रैयतवाड़ी प्रथा कहाँ प्रचलित था ?

     – मद्रास, बम्बई तथा असम के कुछ भागों में

7). रैयतवाड़ी प्रथा की शुरुवात किसने की ?

     – टॉमस मुनरो

8). महालवाड़ी प्रथा कहाँ लागू थी ?

      – मध्य प्रान्त, यूपी (आगरा) एवं पंजाब में

9). किस प्रथा में ईस्ट इंडिया कम्पनी सीधे किसानों से भू-राजस्व लिया करती थी ?

    – रैयतवाड़ी प्रथा में

10). महालवाड़ी व्यवस्था में सरकार  भू-राजस्व के लिए किसके साथ अनुबंध की ?

     -महाल प्रधानों के साथ

अंग्रेजों की भू-राजस्व नीतियाँ

अन्य  GK जानकारी

भारत में अंग्रेजों की भू-राजस्व नीतियां

चम्पारण सत्याग्रह गांधी जी की भूमिका,कारण और प्रभाव

42 वाँ संविधान संशोधन (mini constitution)

राज्य सभा (Council of State)

पंचायती राज व्यवस्था

आप हमे फेसबुक के THE GKJANKARI पेज पर फॉलो कर सकते हैं | twitter – GKJANKARI

Related Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!
HAPPY BIRTHDAY प्रियदर्शिनी GK FACT – National Unity Day क्यों मनाया जाता है ऋषि सुनक का जीवन परिचय सूर्य ग्रहण क्यों होता है Abdul Kalam Quotes