42 वाँ संविधान संशोधन (mini constitution)

42 वाँ संविधान संशोधन (mini constitution)

42वाँ संविधान संशोधन

भूमिका :

” 42वाँ संविधान संशोधन 1976 ” कांग्रेस सरकार की निरंकुशता और हिटलरशाही का व्यापक परिणाम था। साल 1975 , भारतवर्ष के लिए सबसे बुरा काल था जब तात्कालिक प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने मनमाफ़िक आपात काल की घोषणा कर दी। यह वह वक्त था जब देश की जनता इंदिरा गाँधी और उसके सरकार से त्राहिमाम त्राहिमाम कर रही थी। पूरे देश में जनता पार्टी और अन्य विपक्षी पार्टियों ने इस आपात के विरुद्ध कांग्रेस के नाक में नकेल कर रखा था। लोकनायक जयप्रकाश नारायण जैसे कद्दावर नेता ने तो सरकार के प्रति सम्पूर्ण क्रांति छेड़ रखा था। समूचा युवा आवाम दिल्ली कूच करने को तैयार था।

इन्हीं स्थितियों को भांपते हुए इंदिरा सरकार ने अपने मन मुताबिक शासन के बल पे कई सारे संविधान में व्यापक संशोधन किए जिन्हें 42वाँ संविधान संशोधन 1976 के नाम से जाना जाता है। 42 वाँ संविधान संशोधन के पीछे सरकार की यह मंशा था कि उस चीज को ही बदल दी जाए जिसके आधार पर बाकी चीजों को आसानी से बदला जा सके। सत्ते की नशे में चूर इंदिरा गांधी सरकार ने वर्ष 1976 में संविधान की प्रस्तावना के साथ साथ कई सारे ऐसे संशोधन किए जिसने संविधान की मूल आत्मा को ही परिवर्तित कर दिया। यह एक तरह से लोकतंत्र का हनन था जिसमें तंत्र आगे और लोक (जनता) को पीछे छोड़ दिया था।

42 वें संविधान संशोधन की मुख्य बातें :

● यह अब तक का सबसे व्यापक संशोधन था जिसकी व्यापकता के कारण इसे लघु संविधान या मिनी संविधान भी कहा जाता है।

● आर्टिकल 368 में संशोधन कर यह उपबंधित कर दिया गया कि संसद द्वारा किये गए संविधान संशोधनों को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकेगी। साथ ही इन संशोधनों में हेर फेर, बदलाव या कुछ भी परिवर्तन के लिए संसद की विधायी शक्ति पर कोई परिसीमन नहीं होगा। इंदिरा सरकार ने इस संशोधन के जरिये ‘लोकतंत्र का प्रहरी’ न्यायालय को भी अपने कंट्रोल में करने की कोशिश की। जिससे कि भावी समय में किये गए मनमाफ़िक संविधान संशोधन पर कोई सवाल खड़ा नहीं किया जा सके। यह एक तरह से राजशाही फरमान का दूसरा तरीका था जिसमें सवाल करने वाले जीभ को ही बंद करने का आदेश दिया गया था।

● आजादी के समय से चले आ रही लोकसभा और विधान सभा चुनाव अवधि को 5 साल से बढ़ाकर 6 साल कर दिया। जिससे कि सरकार को 1 साल अतिरिक्त शासन करने को सुनियोजित लाभ मिले।

● केंद्र सरकार को यह शक्ति दिया गया कि वह अब राज्यों में भी केंद्रीय सुरक्षा बलों को तैनात कर सकती है। यह एक तरह से अंग्रेजों की द्वैध शासन का ही प्रतिरूप था जिसको नये तरिके से अमली जामा पहनाया गया था। एक तरह से राज्य की रक्षा और सुरक्षा को भी अपने कंट्रोल में करने की अनूठी कोशिश की गई

● संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’, ‘पंथनिरपेक्षता’ और ‘अखंडता’ जैसे व्यापक शब्दों को जोड़ा गया जिसने भावी भारत की दशा और दिशा ही बदल दी।

● संविधान के अनुच्छेद-74 में संशोधन करके यह स्पष्ट कर दिया गया कि राष्ट्रपति (President) मंत्रिपरिषद की सलाह मानने के लिए बाध्य होगा। इसके जरिये इंदिरा गाँधी सरकार ने राष्ट्रपति जैसे पद को भी अपने कंट्रोल में करने की नई पहल की।

● राष्ट्रपति को यह अधिकार दिया गया कि वह समूचे देश के साथ साथ किसी अब किसी एक भाग में भी अनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रीय आपात की घोषणा कर सकता है। साथ ही अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन को 6 महीने से बढ़ाकर 1 साल कर दिया गया। देखा जाए तो यह एक तरह से किसी राज्य या क्षेत्र भूभाग को अंकुश में लेने का दूसरा तरीका ईजाद किया गया था।

● इस संशोधन के जरिये वन,शिक्षा, जनसंख्या नियंत्रण एवं परिवार नियोजन इत्यादि जैसे महत्वपूर्ण विषयों को राज्य सूची से समवर्ती सूची  के तहत कर दिया गया। जिससे कि अब इंदिरा सरकार इन विषयों पर भी अपने हिसाब से कानून बना सके और अपनी मंशा को केंद्र से लेकर राज्य तक प्रतिस्थापित कर सके। उदाहरण के तौर पर उस समय की गई जबरदस्ती पुरुष नसबन्दी आज भी आलोचना का मुख्य बिंदु है।

● इस संशोधन के जरिये यह प्रावधान किया गया कि संसद एवं राज्य विधानमण्डलों की सत्र बैठक के लिए गणपूर्ति आवश्यक नहीं है।

● इस संशोधन के जरिये संसद को यह निर्णय करने का अधिकार दिया गया था कि कौन सा लाभ का पद है और कौन सा नहीं।

● इस संशोधन के अंतर्गत सिविल सर्वेंट्स हेतु न्यायाधिकरणों की स्थापना की व्यवस्था की गई।

● इसके द्वारा संविधान में 2 नये अध्याय क्रमशः भाग 4(क) और 14 (क) जोड़े गए तथा 9 नए अनुच्छेद को समाहित किया गया।

● नीति निदेशक तत्वों को मौलिक अधिकारों पर प्राथमिकता दी गई। साथ ही राज्य के नीति निदेशक तत्वों में और तीन नए नीति निदेशक तत्वों को समाहित गया।

● संविधान के भाग -4 (क) और अनुच्छेद 51 (क) को जोड़कर संविधान में 10 मौलिक कर्तव्यों का समाहित किया गया। फिलहाल अभी कुल मौलिक कर्तव्यों की संख्या 11 हैं।

निष्कर्ष :

42वाँ संविधान संशोधन बीते इतिहास का सबसे प्रमुख संशोधन रहा है। इस संशोधन ने केंद्र को अत्यधिक शक्ति प्रदान की और संवैधानिक मूल्यों को नए शब्दों से परिभाषित करने की कोशिश की। संविधान की मूल प्रस्तावना में ‘समाजवादी’, ‘पंथनिरपेक्षता’ और ‘अखंडता’ जैसे आधारभूत मूल्यों को जोड़कर भारत की चली आ रही संस्कृति और अस्मिता को और मजबूत किया। कुछ अच्छाइयों जैसे कि नीति निदेशक तत्वों को जोड़ना, शिक्षा को समवर्ती विषय में शामिल करना जैसे बिंदुओं के इत्तर 42 वाँ संविधान संशोधन की कुछ खामियां भी रहीं। इन्हीं खामियों को आगे 44 वें संविधान संशोधन 1978 के जरिये फिर से दूर किया गया। न्यायालय और राष्ट्रपति की शक्तियों की फिर से स्थानांतरण और निर्धारण किया गया। यह सर्वविदित है कि इंदिरा सरकार की इसी 42 वें संविधान संशोधन के कारण पूरे देश में घोर आलोचना हुई और अगले चुनाव में उनकी करारी हार हुई। 42 वें संविधान संशोधन की खामियों और कांग्रेस सरकार की निरंकुशता ने जनता पार्टी को केंद्र में सरकार बनाने का रास्ता तय किया।

अन्य gkjankari

कृषि अधिनियम 2020 : तथ्य और विश्लेषण
भारतमाला परियोजना

आप हमे फेसबुक के THE GKJANKARI पेज पर फॉलो कर सकते हैं | twitter – GKJANKARI

Related Posts

6 thoughts on “42 वाँ संविधान संशोधन (mini constitution)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!
HAPPY BIRTHDAY प्रियदर्शिनी GK FACT – National Unity Day क्यों मनाया जाता है ऋषि सुनक का जीवन परिचय सूर्य ग्रहण क्यों होता है Abdul Kalam Quotes